भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की 137 वीं जयंती पर एक संगोष्ठी आयोजित
औरंगाबाद जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन, बतकही एवं समकालीन जवाबदेही के संयुक्त तत्वावधान में शहर के सत्येंद्र नगर स्थित डॉक्टर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह के आवास कला कुंज के परिसर में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की 137 वीं जयंती पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता पूर्व प्रखंड विकास पदाधिकारी भैरव नाथ पाठक तथा संचालन धनंजय जयपुरी ने किया। सर्वप्रथम डॉ राजेंद्र प्रसाद के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई तत्पश्चात वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपनी- अपनी राय रखी। चर्चा की शुरुआत करते हुए डॉ सी एस पांडेय तथा शिव नारायण सिंह ने कहा कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद एक सहज और सरल व्यक्तित्व थे जिन्होंने राजनीति पर अपनी शुचिता की अमर छाप छोड़ी। अपनी बातों को रखते हुए गणित के प्राध्यापक डॉक्टर शिवपूजन सिंह ने कहा कि संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष के रूप में इन्होंने जो महनीय दायित्व का निर्वाह किया वह सदा सर्वदा के लिए चिर स्मरणीय बना दिया। डॉ राजेंद्र प्रसाद पर अपनी एक लघु कविता सुनाते हुए रामाधार बाबू ने कहा-"जीरादेई में जन्मा एक बिहारी था।
दृढ़व्रती था संतहृदय वह मानवता का पुजारी था।।गोष्ठी को बौद्धिक ऊंचाई प्रदान करते हुए डॉ महेंद्र पांडेय ने डॉक्टर प्रसाद के जीवन के कुछ अनुकरणीय परंतु अनछुए पहलुओं को उद्धृत किया जिससे आज की पीढ़ी काफी कुछ सीख सकती है। समकालीन जवाबदेही के संपादक डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र के अनुसार वर्तमान अतीत का सबसे बड़ा समालोचक होता है और इस दृष्टि से समय ने डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ न्याय नहीं किया। उन्हें जितना सम्मान मिलना चाहिए था नहीं मिल सका। मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार रखते हुए डॉक्टर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि एक साधारण काया में असाधारण व्यक्तित्व हो सकता है, इसके जीवंत प्रतिमान थे राजेंद्र बाबू। उनके आचार -विचार से गांधीवाद की खुशबू निकलती थी। इस अवसर पर और जिन लोगों ने अपनी राय रखी उनमें शिव शिष्य पुरुषोत्तम पाठक, इंजीनियर अर्जुन सिंह,कवि राम किशोर सिंह, शिक्षक उज्ज्वल रंजन, सुख्यात नेत्र चिकित्सक हनुमान राम एवं अलख देव नारायण सिंह प्रमुख थे। कुमारी पिंकी ने आगत अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
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