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कानून के लम्बे हाथ

कानून के लम्बे हाथ

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
अब तो उत्तर प्रदेश मंे हनकदार मंत्री रहे गायत्री प्रजापति भी समझ गये होंगे कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं। कानून के हाथ से गर्दन बचा पाना बहुत मुश्किल होता है। गायत्री प्रजापति की हनक इतनी थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनसे मंत्री पद छीन लिया था लेकिन उन्हें दुबारा गायत्री को मंत्री बनाना पड़ा। गायत्री प्रजापति और उनके साथियों पर सामूहिक दुराचार का आरोप लगाया गया लेकिन उस समय की सरकार और पुलिस उनको गिरफ्तार करना तो दूर, उनके खिलाफ रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कर सकी थी। उसी समय देश की सबसे बड़ी अदालत ने विधायिका को समझाया कि कानून से कोई बच नहीं सकता है। प्रदेश मंे विधानसभा के चुनाव होने वाले थे और तभी सुप्रीम कोर्ट की फटकार पर लखनऊ की पुलिस को गायत्री प्रजापति के खिलाफ सामूहिक दुराचार और अन्य धाराओं मंे मुकदमा दर्ज करना पड़ा। इसके बाद भी गायत्री प्रजापति ने कानून के पंजे से अपनी गर्दन बचाने की कोशिश की। आरोप लगाने वाली महिला का मुंह बंद करने के लिए लखनऊ मंे लाखों रुपये का एक प्लाट उस महिला के नाम करवा दिया। महिला ने अदालत में अपना बयान बदल दिया लेकिन उसकी बेटी ने कहा कि मैं अपराधी को सजा दिलवा कर रहूंगी। गायत्री प्रजापति ने जो प्लाट भुक्तभोगी महिला के नाम कराया था, उसके मालिक गायत्री के एक कम्पनी के पूर्व अधिकारी थे। उन्होेंने भी गायत्री प्रजापति और उस महिला के खिलाफ रिपोर्ट लिखा दी। गायत्री प्रजापति और उनके बेटे पर धमकी देने का आरोप लगाया। इस तरह अदालत को सबूत मिले और 12 नवम्बर 2021 को लगभग 6 साल बाद गायत्री प्रजापति और उनके साथी आशीष शुक्ला व अशोक तिवारी को अंतिम सांस तक जेल मंे बंद रखने का फैसला जनप्रतिनिधियों के लिए बने विशेष कोर्ट ने सुनाया है।
समाजवादी पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति के खिलाफ चल रहे सामूहिक बलात्कार के मामले में शुक्रवार को सांसद-विधायक अदालत ने गायत्री समेत तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और प्रत्येक दोषी पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। अभियोजन पक्ष के मुताबिक 12 नवम्बर 2021 को सांसद-विधायक अदालत के विशेष न्यायाधीश पवन कुमार राय ने सामूहिक दुष्कर्म मामले में पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति और उनके दो साथियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई तथा प्रत्येक दोषी पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। इस दौरान अदालत में गायत्री और दो अन्य दोषी मौजूद थे जिन्हें सजा काटने के लिए जेल भेज दिया गया। विशेष न्यायाधीश ने दो दिन पहले गायत्री समेत तीन लोगों को मामले में दोषी करार दिया था और सजा पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने जिन लोगों को सजा सुनाई है, उनमें गायत्री प्रजापति के अलावा आशीष शुक्ला व अशोक तिवारी शामिल हैं। न्यायाधीश ने तीनों को दोषी ठहराते हुए मामले के चार अन्य आरोपियों- विकास वर्मा, रूपेश्वर, अमरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू और चंद्रपाल को सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया था। अभियोजन पक्ष ने मामले में 17 गवाह पेश किए थे।
उत्तर प्रदेश मंे जब विधानसभा के चुनाव होने वाले थे, तभी 18 फरवरी, 2017 को उच्चतम न्यायालय के आदेश पर गायत्री प्रसाद प्रजापति व अन्य के खिलाफ थाना गौतम पल्ली में सामूहिक दुराचार, जानमाल की धमकी व पॉक्सो कानून के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था। पीड़ित महिला ने दावा किया था कि बलात्कार की घटना पहली बार अक्टूबर 2014 में हुई थी और जुलाई 2016 तक जारी रही तथा जब आरोपी ने उसकी नाबालिग बेटी से छेड़छाड़ करने की कोशिश की, तो उसने शिकायत दर्ज करने का फैसला किया। इस प्रकार 18 फरवरी, 2017 को प्राथमिकी दर्ज होने के बाद प्रजापति को मार्च में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में ही थे। इससे पहले सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व खनन मंत्री और गैंगरेप मामले के आरोपी गायत्री प्रजापति को मेडिकल ग्राउंड पर दो महीने की अंतरिम जमानत देने का इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया था। जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने यूपी सरकार की अपील पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि हाई कोर्ट का तीन सितंबर 2020 का आदेश संतोषजनक नहीं है। प्रजापति समाजवादी पार्टी सरकार में मंत्री थे। उन पर अन्य लोगों के साथ एक महिला का रेप करने और उसकी नाबालिग बेटी से छेड़छाड़ करने के प्रयास के आरोप थे। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि हाई कोर्ट ने प्रजापति को मिल रहा इलाज अपर्याप्त होने और उन्हें किसी खास मेडिकल कॉलेज से आगे इलाज की जरूरत के लिए मेडिकल ग्राउंड पर अंतरिम राहत देने के बारे में अपनी संतुष्टि दर्ज नहीं की है। बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सारी सामग्री पर विचार किए बगैर ही तीन सितंबर, 2020 का आदेश पारित कर दिया, इसलिए हम अपील स्वीकार करते हैं और तीन सितंबर का आदेश रद्द करते हैं।
बेंच ने प्रजापति के वकील की इस दलील पर भी विचार किया कि हर किसी को, भले ही वह किसी गंभीर अपराध में आरोपी ही हो, जेल प्राधिकारियों की ओर से मानवीय तरीके से पेश आने की अपेक्षा की जाती है। बेंच ने कहा कि इस बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती। कानून के तहत आरोपी सहित सभी के साथ मानवीय व्यवहार होना चाहिए। यही नहीं, गंभीर बीमारी से ग्रस्त मरीज को जेल में उचित इलाज उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इस मामले में सुनवाई के दौरान यूपी सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि प्रजापति को हर तरह की मेडिकल सुविधा और इलाज उपलब्ध कराया जा रहा है। शीर्ष अदालत ने 21 सितंबर 2020 को प्रजापति को उच्च न्यायालय द्वारा तीन सितंबर को दी गई दो महीने की अंतरिम जमानत पर रोक लगा दी थी। प्रजापति के खिलाफ गौतमपल्ली थाने में 2017 में सामूहिक बलात्कार का मामला दर्ज किया गया था और उन्हें 15 मार्च 2017 को गिरफ्तार कर लिया गया था। पूर्व खनन मंत्री गायत्री प्रजापति की ओर से अर्जी देकर मुकदमे की तारीख बढ़ाए जाने की मांग भी की गई थी। इसमें कहा गया था कि इस मुकदमे को किसी दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने की मांग को लेकर उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई है। इसी के साथ एमपी एमएलए कोर्ट के उस आदेश को हाईकोर्ट लखनऊ बेंच में चुनौती दी गई है जिसमें उसके बचाव के सबूत पेश करने की अर्जी को खारिज कर दिया गया था। वहीं 8 नवंबर को अभियोजन की ओर से प्रार्थना पत्र देकर कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि गवाह अंशु गौड़ ने अपने बयान में साफ कहा है कि पीड़िता को कई प्लाटों की रजिस्ट्री और भारी रकम का लालच देकर कोर्ट में सही गवाही न देने के लिए राजी किया गया था। अभियोजन ने रजिस्ट्री को साबित करने के लिए रजिस्ट्रार लखनऊ और पीड़िता की ओर से दिल्ली के कोर्ट को दिए गए कलम बंद बयान को तलब करने का आदेश देने की भी मांग की थी। पीड़िता एमपी एमएलए कोर्ट में गायत्री प्रजापति पर लगाए गैंगरेप के आरोपों से मुकर चुकी थी लेकिन उसकी बेटी ने आरोप बरकरार रखे। प्लाट की रजिस्ट्री करने वाले चैबे जी ने भांडा फोड़ दिया था। इस प्रकार गायत्री की गर्दन फंस गयी। (हिफी)
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