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कृषि कानून

कृषि कानून

जय प्रकाश कुअर 
कृषि कानून बिल लोक सभा में 14 सितम्बर 2020 को पेश हुआ था और 17 सितम्बर 2020 को पास हुआ! जिसे तीन कृषि कानून 2020 कहते हैं!इस कानून के अंतर्गत तीन प्रावधान थे, जो नीचे दिए गए हैं:-
1. इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान किया गया था! ऐसा माना जा रहा था कि इस कानून के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा, क्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी! इस कानून का मूख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने के लिए उनके उत्पादन, सप्लाई और कीमतों को नियंत्रित रखना था!
2. कृषि उत्पादन ,व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा) कानून! इस कानून के तहत किसान कृषि उत्पादन विपरण समिति ( ए. पी.एम.सी. ) के बाहर भी अपने उत्पाद बेंच सकते थे! इस कानून के तहत बताया गया था कि देश में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया जायेगा, जहाँ किसानों और व्यापारियों को मंडी के बाहर फसल बेंचने का आजादी होगा! प्रावधान के तहत राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई थी!
3. कृषक ( सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून! इस कानून के मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल की निश्चित कीमत दिलवाना था! इसके तहत कोई किसान फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता कर सकता था! इस समझौते में फसल की कीमत, फसल की गुणवत्ता, मात्रा और खाद आदि का इस्तेमाल आदि बातें शामिल होनी थी! कानून के मुताबिक किसान को फसल की डिलीवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान किया जाता और बाकी पैसा 30 दिन में देना होता! इसमें यह प्रावधान भी किया गया था कि खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी व्यापारी की होती! अगर एक पक्ष समझौते को तोड़ता तो उसपर जुर्माना लगाया जाता!
इन तीन कृषि कानूनों के लागू होने के बाद 3 नवम्बर 2020 , यानि लगभग एक साल से अनेक कृषि संगठनों द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले तीनों कृषि कानूनों को सरकार द्वारा वापस लेने के लिए देश भर में आंदोलन चलाया जा रहा है! आन्दोलन का विशेष प्रभाव पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में है! इनके मुताबिक कानून में अनेक खामियां है और इसके लागू होने पर कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा! आंदोलन के क्रम में किसानों ने सिन्धु बार्डर, गाजियाबाद बार्डर आदि को पूर्ण रूप से बाधित कर दिया है और अपने कब्जा में कर लिया है! किसानों के नेताओं में राकेश टिकैत का नाम प्रमुखता से लिया जाता है! उपरोक्त बार्डरों पर यातायात की समस्या खड़ी हो गई है! किसान नेताओं का पहले कहना था कि वे तब तक बार्डर नहीं खाली करेंगे, जब तक तीनों कृषि कानूनों को सरकार वापस नहीं ले लेती है! इस प्रकार आन्दोलन जारी रखा गया है!
अब जब प्रधानमंत्री जी ने केन्द्रीय कैबिनेट की मंजूरी के बाद 19 नवम्बर 2021 को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया था, तो किसानों को आन्दोलन खत्म कर घर वापसी जाना शुरू कर देना चाहिए था! पर ऐसा नहीं दिखाई दिया! आज दिनांक 29.11.2021 को वापसी बिल पेश होने के बाद संसद के दोनों सदनों ने इसे मंजूरी प्रदान कर दिया है! इस प्रकार जो तीन कृषि कानून 2020 में संसद की मंजूरी के बाद लागू किये गए थे, वो अब संसद की मंजूरी के बाद वापस लिए जा चुके हैं!
लेकिन अब किसान नेता घर वापसी के बजाय आंदोलन समाप्त करने के लिए नयी नयी शर्तें सरकार के सामने पेश करने लगे हैं! अब उनका कहना है कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस का कानून सरकार बनाये और आन्दोलन के दौरान मृत किसानों को उचित मुवायजा दे! इसके अलावा कई और नयी नयी मांग सरकार के सामने रखकर आंदोलन और तेज करने की धमकी दे रहे हैं! उनके इन मांगों का समर्थन विपक्ष भी कर रहा है! किसानों के नेता आंदोलन खत्म नही करना चाहते हैं उनका कहना है कि 4 दिसम्बर 2021 तक सरकार अगर उनकी इन नयी मांगों को नहीं मानती है तो संयुक्त किसान मोर्चा आगे की आंदोलन का रूख अपनायेंगा और एक बार फिर दिल्ली के रास्तों पर संसद तक 5 लाख ट्रैक्टर मार्च करेंगे! धमकी भरे शब्दों में नेताओं ने यहाँ तक कह दिया कि फिर गणतंत्र दिवस दूर नहीं है!
उनके प्रमुख मांग में एम. एस. पी.पर कानून बनाया जाना है! एम. एस. पी.एक तरह की गारंटेड कीमत होती है, जो किसान को उनकी फसल पर मिलती है! अगर बाजार में उस फसल की कीमत कम भी होगी तो उस फसल की मिनिमम सपोर्ट प्राईस वही किसान को मिलेगी! ऐसा करने के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार चढ़ाव का असर किसानों पर न पड़े!
सरकार ने एम. एस. पी.पर समिति बनाने की बात कही है! सरकार ने यह भी मान लिया है कि पराली जलाना अपराध की श्रेणी से अब बाहर कर दिया गया है! परंतु आंदोलनकारी इससे संतुष्ट नहीं है! वे आंदोलन को और भी तेज करने के पक्ष में हैं!
सरकार को घेरने के लिए आंदोलनकारियों के साथ विपक्ष भी कमर कसे हुए है! ऐसे में सरकार को समुचित निदान सोचने की जरूरत है! आंदोलनकारी दबाव बना रहे हैं गणतंत्र दिवस का नाम लेकर, तो पुरा देश जानता है कि पिछले गणतंत्र दिवस पर इन किसान आंदोलनकारियों ने राष्ट्रीय ध्वज का भी अपमान किया था! राष्ट्रीय ध्वज को दिल्ली के लाल किले के प्राचीर से उतार कर उसके स्थान पर किसान यूनियन का झंडा और धार्मिक झंडा लगाया था! यह देश द्रोह का मामला था! 300 से ज्यादा पोलिस घायल हुए थे और 3 बीजेपी सदस्य मारे गए थे! समय रहते सरकार को इस बार उचित कदम उठाने की जरूरत है, क्योंकि आंदोलनकारियों का मन विपक्ष की उनकी मांगों का समर्थन करने से और बढ़ रहा है और वे आंदोलन को और उग्र रूप देने की धमकियाँ दे रहे हैं!
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