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युग पुरुष

युग पुरुष

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अब क्या बचा है कलियुग के प्रथम चरण में
जो अंतिम चरण में होगा ?
एक धर्मराज का जुए में
अपनी धर्म पत्नी पर दांव लगाना
गुरु द्रोण,पितामह जैसे योध्दा
और धर्म रक्षक के सामने
राजा के पुत्र द्वारा राज दरबार में
कुलवधू की अस्मिता से खेलना
अमाननीय कृत्यों की इस पराकाष्ठा को
द्वापर में ही देख चुके हैं हम
सीता जैसी पतिव्रता नारी की
बार- बार अग्नि परीक्षा से
कुपित और क्षुब्ध होकर
धरती में समा जाना
प्रताड़ना की इस पराकाष्ठा को
त्रेता में ही देख चुके हैं हम
वंशवाद, परिवारवाद
हत्या और लूट से
साम्राज्य का विस्तार
ऐसे कुकृत्यों से भरा पड़ा है
भारत का इतिहास
जो हो रहा है कलियुग में
उसमें कुछ भी नहीं है नया
अच्छे बुरे लोगों का संबंध
युगों के बदलने से नहीं होता
यदि मनुष्य जान ले
अपने भीतर छुपी असीम संभावनाओं को
यदि प्रबल हो मनुष्य में धर्म के संस्कार
तो वह पुरुष कर सकता है स्वतः
युग का निर्माण
और कहला सकता है युगपुरुष ।
-- वेद प्रकाश तिवारी
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