एलोपैथी बनाम आयुर्वेद।

एलोपैथी बनाम आयुर्वेद।

एलोपैथी का गड़बड़ चिकित्सा विज्ञान है मनुष्य को रोगी बनाकर ज्यादा खतरनाक बीमारी पैदा करके मनुष्य की दौलत लूटकर उसकी हत्या करने का विज्ञान।

  • आयुर्वेद है सम्पूर्ण रोग का निदान।
  • आयुर्वेद है मनुष्य को पूर्ण निरोगी बनाने का विज्ञान।

हमारी उम्र 54 साल हो गई लेकिन 8 साल की उम्र से योगासन प्राणायाम करने तथा आयुर्वेदिक जीवन पद्धति अपनाने के कारण आजतक हम चश्मा नहीं लगाते हैं। दूर और नजदीक से देखने पढ़ने लायक दोनों आँख की रोशनी ठीकठाक है। बिना फुलाये चना कुटकुटा कर खा जाते हैं। अपने दांत से ईख छीलकर ईख का रस चूसते रहे हैं।

हम विश्वप्रसिद्ध आयुर्वेदिक घराना में जन्म लेकर करीब 30 साल से पटना हाईकोर्ट में वकालत करते हैं। झारखंड हाईकोर्ट, उड़ीसा हाईकोर्ट, कलकत्ता हाईकोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के केस हैंडिल करने का भी अनुभव रहा गई। बिहार के करीब 22 जिला के जिला न्यायालय में भी केस बहस करने जाते रहे हैं। बिहार की राजधानी पटना में कार्यरत करीब 24 प्रकार के कोर्ट और ट्रिब्यूनल में भी केस बहस करते रहे हैं।

हम खुली आँख से कानून की मोटी मोटी किताबों के छोटे छोटे बारीक अक्षर पढ़ते रहते हैं। हजारों क्रिमिनल केस के केस में पुलिस द्वारा लिखे गए धुंधले चार्जशीट और केस डायरी भी पढ़ना पड़ता रहा है।

अब एलोपैथी चिकित्सा का नमूना देखिए।

करीब 3 साल पहले हमारा आँख लाल हो गया था।

दोस्त लोगों के बहुत हल्ला करने पर AIIMS पटना में हम आँख दिखाने चले गए।

AIIMS का आँख रोग विशेषज्ञ डॉक्टर हमसे पूछा कि 50 साल से ज्यादा उम्र होने के बावजूद हम पावर वाला चश्मा क्यों नहीं लगाते हैं? 40 साल की उम्र के बाद तो पावर वाला चश्मा लगाना ही चाहिए।

हम बोले कि आँख हमारा ठीक है। हमको केवल आँख आ गया है और आँख लाल होने का ही इलाज करवाना है।

AIIMS के डॉक्टर के निर्देशानुसार डॉक्टर द्वारा लिखी दवा आँख में डालने पर हमारे अच्छे भले दोनों आँख की आधी रोशनी गायब हो गई।

दोबारा डॉक्टर से दिखाकर शिकायत किये तो दोबारा जो दवा डालने के लिए लिखा गया उसके आँख में डालने पर आँख की दो तिहाई रोशनी गायब हो गई। उसके बाद तीसरी बार आँख दिखाने गए तो डॉक्टर बोला कि हमको गठिया अर्थराइटिस के साथ मोतियाबिंद का बीमारी हो गया है और अब आँख का ऑपरेशन करना पड़ेगा।

लेकिन हमको कभी गठिया अर्थराइटिस मोतियाबिंद का चक्कर तो कभी था ही नहीं। इसिलए हम ऑपरेशन के लिए तैयारनहीं हुए।

उसके बाद दोस्त लोग बोले कि AIIMS Patna में बढ़िया डॉक्टर नहीं रहता है। इसलिए अब IGIMS Patna के आँख विभाग में आँख दिखलाया जाए। लेकिन वहाँ दिखाने से भी कोई लाभ नहीं हुआ।

उसके बाद दोस्त लोग बोले कि Old is Gold, PMCH Patna में ज्यादा जानकार डॉक्टर लोग रहते हैं। इसलिए हम PMCH Patna के आँख विभाग में जाकर आँख दिखला लिए। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

उसके बाद दोस्त लोग बोला कि प्राइवेट में पटना के नामी गिरामी आँख के बड़े डॉक्टर के प्राइवेट क्लिनिक में आँख दिखाया जाए। उसके बाद दो बार 400-400 रुपया फीस देकर प्राइवेट में आँख के डॉक्टर से इलाज करवाये तो आँख की लालिमा समाप्त हो गई। लेकिन रोशनी वापस नहीं आई।

चंडीगढ़ गए तो PGI Chandigarh के आँख विभाग में जाकर आँख दिखा लिए। वहाँ से भी कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। 

अंत में एलोपैथी चिकित्सा से थक हारकर अपने विश्वप्रसिद्ध आयुर्वेद विशेषज्ञ पूर्वजों द्वारा सुरक्षित रखे गए आयुर्वेद की मोटी मोटी किताबों का अध्ययन करके अपना आयुर्वेदिक इलाज खुद किये। खानपान पर विशेष ध्यान दिए। अंकुरित चना और चौलाई का साग जमकर खाये। योग प्राणायाम के साथ दाहिने बांयें तथा गोल गोल आँख नचाये। उंगली के नीचे हथेली दबाए। आँख बंद करके ईश्वर का ध्यान लगाए।

उसके बाद जाकर एलोपैथी के डॉक्टर द्वारा पैदा की बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज करके अपनी आंखों की खोई हुई रोशनी वापस लाने में हम सफल हो सके थे।

उस घटना के 3 साल बाद भी आजतक हम 54 साल की उम्र में बिना चश्मा के मोटी मोटी कानून की किताबों के छोटे छोटे बारीक अक्षर पढ़ते हैं तथा मोबाइल पर फेसबुक ट्विटर व्हाट्सऐप सबकुछ हैंडिल करते रहते हैं बिना चश्मा के ही।

यही है एलोपैथी और आयुर्वेद में अंतर।

एलोपैथी एक साधारण बीमारी के इलाज के नाम पर चार ज्यादा खतरनाक बीमारी पैदा करता है।

आयुर्वेद मनुष्य को बीमार होने से बचाता है तथा समस्त रोगों से मुक्त करके मनुष्य को निरोगी बनाता है।

विदित हो कि योग चिकित्सा, प्राणायाम चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा, तंत्र चिकित्सा, हस्तस्पर्श चिकित्सा, अभ्यंग चिकित्सा (मालिश चिकित्सा), शल्य चिकित्सा (सर्जरी), आध्यात्मिक चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा (नेचरोपैथी), एक्यूप्रेशर, जलचिकित्सा, पंचकर्म चिकित्सा आदि आयुर्वेद के ही उपांग हैं।

कृष्ण बल्लभ शर्मा 'योगीराज'
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