फेर में पड़े हैं (कविता)

अहंकार में चूर हो,
ऐड़ी अलगा कर खड़े हैं।
हर एक से कह रहा है,
हम बड़े हैं...हम बड़े हैं।।
और कुछ बड़े बनने को आतुर,
लोग पाल लिए है गलत फितूर,
झूठी और लंबी परछाईं देख-
हाथ बांधे कह रहे हां.. हुजूर,
मोह के अंधकार में पड़े हैं।।
अभी दिख रहा है सीधा सरल,
देखना फिर वही उगलेगा गरल,
ऐ शिखंडियों का जमात तुम्हें-
बनाकर रख देगा निर्बल,
अभी वाणी भले हो मिठी पर-
विष दंत बड़े कड़े हैं।।
सजाकर झूठ का दूकान,
बिखेर कर प्रपंच मुस्कान,
और तुम समझते रहे हो-
मेरा कर रहा है सम्मान,
पर सच्चाई और है भाई-
मेरे कारण आंखों में गड़ें है।।
मन में पालकर क्रोध,
वह निकाल रहा प्रतिशोध,
और खुद होशियार बन-
बाकि को समझ अबोध,
बच सकें तो बचा लें
किस फेर में पड़े हैं।।
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
वलिदाद अरवल (बिहार)
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com