पत्रकारिता में खोजपरक रिपोर्टिंग की बजाय कॉरपोरेट रिपोर्टिंग होने लगी है I
आलेख:- रमेश कुमार चौबे
जब से पत्रकारिता में कार्पोरेट जगत का प्रवेश हुआ है पत्रकारिता एक प्रोफेशनल व्यवसाय बन चुका है I पत्रकारिता की दशा और दिशा आज जिस रूप में समाज को दिख रहा है उसका मुख्य कारण है पत्रकारिता में कार्पोरेट का दखल I एक तरह के पत्रकारिता को कार्पोरेट मिडीया घरानों ने हाईजैक कर लिया है I पत्रकारिता में यह स्थिति हालाँकि काफी लंबे वक्त से तैयार हो रही थी लेकिन तब इसकी कुछ नैतिक मर्यादाएं थी I कम से कम लज्जा का आँचल भी था लेकिन आज तो निर्लज्जता का दामन भी इसकी निर्लज्जता के आगे तुक्ष्य दिखाई देता है I कॉरपोरेट जगत खासतौर पर बड़े व्यापारिक घरानों ने जबसे पत्रकारिता को विशुद्ध रूप में प्रोफेशनल व्यवसाय बनाने का ठान लिया है तब से उनके प्रभुत्व के कारण पत्रकारिता चारण भी भूमिका में बल्कि उनकी कठपुतली की भूमिका में आ गया है I
शासन और सत्ता का रसूख का स्वाद रसपान करने के साथ हीं विज्ञापन दाताओं के उंगली के इशारों पर नाचने में हीं उसे अब परमसुख मिलता है I अब पत्रकारिता बिजनेस का रूप अख्तियार पर चुकि है जिसकी लेखनी पर समाज को यकीन करने में दुविधा हो रही है I कॉरपोरेट रिपोर्टिंग के नाम पर पाखंड किया जाता है I कंपनियों के प्रेस रिलीजों और जनसंपर्क कवायदों पर आधारित अब रिपोर्टिंग होता है I आज के परिदृश्य में राजनीतिक रिपोर्टिंग की दशा और दिशा सत्ताधारियों के व्यापारियों द्वारा तय किया जाता है I सत्ताधारियों के पापों को छुपाकर उनके झूठे उपलब्धियों का बखान करते नहीं थकता है आज की मीडिया I विपक्ष की मलामत और सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ आलोचना की किसी भी आवाज को दबाने के अलावा शायद ही कुछ शेष बचा है मीडिया के चरित्र का I अब तो कुछ पत्रकार एक कदम और आगे चले गए हैं और सत्ताधारियों का पक्षकार बन सत्यता पर पर्दा डाल सत्ताधारियों के अन्याय,अत्याचार और झूठ का भी विश्लेषण अपने कुतर्क से उनके बचाव के लिए करते हैं I टीवी डिबेट को देखने से हीं इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि सत्ता और शासन के रखैल यानि केप्ट के रूप में भी उनको काम करने में गुरेज नहीं है I इसी कारण अब लोगों का भरोसा खोता जा रहा है प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया I गनीमत है कि आज के इंटरनेट युग में संचार माध्यमों का सर्वसुलभ हो जाने के कारण सच्चाई सोशल मीडिया पर आ रहा है I वैसे सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव एवं सरकार पर सच्चाई उजागर होने के बढ़ते भय और दबाव के कारण सरकार विचलित हो गई है I सरकार को अब कहीं न कहीं सोशल मीडिया से चुनौती मिलता दिखाई देता है I इसीलिए अब सरकार सोशल मीडिया की आलोचनाएँ करती दिखती है और अभिव्यक्ति की आजादी पर शासकीय कानून की निरंकुशता से अंकुश लगा रही है I सच्चाई दिखने वालों को भी साईबर क्राईम लॉ के नाम पर शासन और सत्ता अपने दमनात्मक सोंच से कुचलने का हर तिकड़म बाजी हथियार इस्तेमाल करती है I
ऐसे में लोकतंत्र के असली मालिक जनता को और समाज को अपने स्वविवेक से निर्णय लेना है कि लोकतंत्र की आवाज और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कहीं उनसे छिनने का शासकीय षड़यंत्र तो नहीं हो रहा है ? छद्म देशभक्ति की आड़ में तथाकथित राष्ट्रवाद के नाम पर नैतिकता की तिलांजलि देते हुए सत्ताधारी पार्टी या वास्तव में कॉरपोरेट मीडिया अपनी धमकियों एवं दमन से व्यक्ति के मूल मौलिक अधिकारों को भी उससे छिनना चाहती है I आज लोकतंत्र में सत्ताधारी सत्ता के व्यापारी और कार्पोरेट के हीत रक्षक बनकर लोकतंत्र का भक्षण कर रहे हैं I लोकतंत्र के मालिक जनता को ऐसी स्थिति में एकजुट होकर समाज को सशक्त कर दमनकारी सत्ता और शासन के गलत नीतियों और उनके नपाक इरादों के विरुद्ध मुखर आवाज बुलंद करना चाहिए Iदिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com


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