दो जून की रोटी
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गिरीन्द्र मोहन मिश्र ,
फ़ोटो जर्नलिस्ट,
जी.एम.ईस्टेट .
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भूखे पेट रहकर भी खूब दर्शाओ देश भक्ति .
वगैर शक्ति का कैसे होता है देशभक्ति,
झूठा से ही सीख रहा है झूठा देशभक्ति.
सच का क्या दरकार है झूठ में असीम शक्ति,
झूठ से बनती है सरकार करो इसकी भक्ति.
सच से इतनी नफ़रत है झूठ से मुहब्बत,
सच से गर मुहब्बत होता मिलता खूब बरक्क्त.
सच का सामना करने के लिए हो चरित्र शक्ति,
वगैर चरित्र शक्ति का बेईमानी है देश भक्ति.
सड़क पर भूखे चले भूखे मरे वो गरीब मजदूर,
ज़मीर मरा पहले बोला ये देशभक्ति का दस्तूर.
बहती हुई इस उल्टी गंगा में भक्त ही हाथ धोये,
दो जून की रोटी बगैर शक्ति कहाँ से होये.
जीवन के लिए चाहिए पहले दो जून की रोटी,
पेट भरने के बाद ही जगती है मन में भक्ति.
बात से भी आती है शक्ति जब पेट में हो रोटी,
मन की बात करने से पेट में नहीं जाती है रोटी.
बड़ी बड़ी तो बातें किये और किये खूब वादे,
बेरोजगारो का तो फ़ौज़ खड़ा नेक नहीं इरादे.
जीवन का दस्तूर है पहले दो जून की रोटी ,
जी.एम.इसके बाद ही अन्य काम सब होती.
यही दो जून की रोटी कराती सब पुण्य पाप,
इसके वगैर जीवन में होती नहीं है कोई बात.
ईश्वर रब ने बोला दो जून की रोटी है सवाल,
जब भी भूखा हक़ माँगेगा उठेगा तब बबाल.
दो जून की रोटी पर लम्ब दंड गोली चलाते,
क्या महल वाले वगैर रोटी के जीवन बिताते.
सूट बूट लूट कर के भी काजू का रोटी खाते,
वगैर रोटी जिन्दगी जी कर क्यों नहीं बताते .
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