वह रचनाकार
वह रचनाकार करता है
हमसे प्रेम बेशुमार
जिसकी कल्पना का चमत्कार
मुझे करता है आकर्षित
उसकी तरफ बार-बार
उसकी पवित्रता झलकती है
धरती से आकाश तक
कण-कण से झाँकती
उसकी विराट छवि
कहती है मुझसे--
तुम भूले बैठे हो मुझे
पर मैं तब- तब रही हूँ
तुम्हारे साथ
जब-जब मिला है गौरव तुम्हें
मनुष्य बनने का
अब न करो देर
उतार लो मेरे गुणों को
अपने भीतर
जी लो मेरे साथ
क्योंकि, मानवीय गुणों से ही
होती है
मेरी कल्पना साकार ।
-- वेद प्रकाश तिवारी