हनुमानजी की महिमा महावीर जयंती ८ अप्रैल के अवसर पर विशेष
लेखक पण्डित श्री कृष्ण दत्त शर्मा
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥

विनती करूऊँ जोरि करि रावण ।
सुनहु मान तजि मोर सिखावन ।।
हनुमानजी जब बोलते हैं हाथ जोडकर हे प्रभु! "खायऊँ फल प्रभु लागि भूखा" यह हनुमानजी की कायरता नहीं है आप इसे हनुमानजी की कायरता समझने की भूल मत करना, यह हनुमानजी की विनम्रता हैं, यह उनकी महानता है, दुष्ट को उसी भाषा में मत बोलो अन्यथा दुष्टता और बढेगी, दुष्ट के सामने भी शिष्टता का ही प्रयोग हो, हनुमानजी कभी उत्तेजित नहीं होते क्योंकि मान-सम्मान का कोई भाव ही हनुमानजी में नहीं है वह तो मान-अपमान से कभी भी प्रभावित नहीं होते।
पैसा किसी को रूला रहा है या हमारा पैसा किसी रोते हुए को हँसा रहा है, पैसा किसी को गिरा रहा है या गिरे हुए को सहारा देकर उठा रहा है, हमारा पैसा किसी के प्राणों का हरण करने जा रहा है या किसी के प्राणों की रक्षा करने जा रहा है, हमारा पैसा किसी की रोजी-रोटी छीनने में लगा है या किसी की रोजी-रोटी की व्यवस्था में लगा है, यह मत देखो कि पैसा किस काम आएगा यह देखो कि पैसा किस काम आ रहा है और किसकाम आना चाहिए यही विक्रम है।
हनुमानजी रावण की अशिष्ट भाषा में भी मौन यानि एक बार तो रावण ने यहां तक कह दिया कि अरे मूर्ख तेरी मृत्यु निकट आई देख तो सही तेरे बराबर में कौन खडा है, तो हनुमानजी ने मुडकर देखा, बोले तुझे इससे डर नहीं लग रहा है कि मौत तेरे पास खडी है, बोले डर तो नहीं लग रहा है बोले क्यो? तो फिर हनुमानजी ने कहा खडी तो मेरे पास है पर देख तुझे रही है, इसलिए मुझे डर नहीं लग रहा है, पूछा तेरे पास आकर क्यो खडी है, मेरे पास क्यों नहीं आयी?
तो बोले हनुमानजी की पूछ्ने आयी है, रावण का अभी काम करना है या कुछ दिन बाद करना है, थोडी बहुत हनुमानजी मजाक करते थे अन्यथा हनुमानजी तो मौन ही रहते हैं, हमारे संतों का कहना है कि अगर सामने वाला अशिष्ट है तो आप मौन हो जाइये, अगर एक गाली देगा तो सैकड़ों की संख्या में वापस आयेगी और अगर मौन हो गए तो एक ही एक रहती है,
मूरख कामुक बाँबिया,निकसत बचन भुजंग।
ताकी औषधि मौन हैं,विष नहीं व्यापत अंग।
हनुमानजी शांत मौन खडे हैं, उत्तेजित नहीं होते हैं, मैने सुना है बडी उपहास की कथा है, सही या गलत मुझे नहीं पता लेकिन मैंने सुनी है, एक बार अकबर ने बिरबल से कहा कि बीरबल हम तुम्हारे पिताजी से मिलना चाहते हैं, हम देखना चाहते हैं कि जिन्होंने इतने योग्य पुरूष को जन्म दिया हैं वह पिता कैसे होंगे, हम उनकी भी योग्यता देखना चाहते हैं, बीरबल ने कहा वह गांव के बूढे व्यक्ति: वह कहां राजदरबार में आएंगे? रहने दीजिये।
अकबर बोले, नहीं, हम तुम्हारे पिताजी से मिलना चाहते हैं और देखना चाहते हैं कि जिससे तुम्हारी प्रखर बुद्धि है हम उनकी भी परीक्षा लेना चाहते हैं, अब यह बडा मुश्किल हो गया बीरबल को, मालूम है कि पिताजी बिल्कुल गांव के हैं उनको कुछ आता जाता नहीं और राजा जिद कर रहा है, अगर पिताजी उनका उत्तर दे न पाए तो बादशाह पिताजी का अपमान करेंगे जो मै सह नहीं सकता, न ही राजा से बिगाड सकता हूँ, तो क्या करूँ?
बीरबल घर आए और पिताजी से कहा कि पिताजी एक धर्म संकट आ गया है, बोले कल आपको राजदरबार चलना है और सम्राट आपकी योग्यता की परीक्षा लेंगे, वह कितने भी प्रश्न आपसे पूछे बस इतना करना कि आप मौन रहना, बाकी मैं सम्भाल लूंगा, पिताजी को समझा-बुझाकर दरबार में ले आये, दरबार लगा और बादशाह का आगमन हुआ, पिताजी को बादशाह ने प्रणाम किया और कहा कि आपने जैसे योग्य पुत्र को जन्म दिया हैं, हमारी इच्छा थी कि आपका दर्शन करे, आपकी योग्यता का भी दर्शन करे।
अकबर ने बीरबल के पिताजी से प्रश्न पूछना प्रारम्भ किया, बीरबल ने पिताजी को देखकर इशारा कर दिया मौन, तो बीरबल के पिताजी कुछ बोले नहीं, दूसरा प्रश्न किया फिर मौन, तीसरा प्रश्न किया फिर मौन, अब भरी सभा में बादशाह का उत्तर न दे, न सिर हिलाये, बिल्कुल जडवत से बैठे हैं तो बादशाह का अहंकार जाग गया कि मैं बोल रहा हूँ, मगर यह बूढा मेरे प्रश्नो का उत्तर नहीं दे रहा है,
अकबर बोला, बीरबल एक बात बताओ, अगर किसी मूर्ख से पाला पड जाए तो क्या करना चाहिए? यह अकबर ने बीरबल से प्रश्न किया उनके पिताजी के लिये, बीरबल ने कहा सरकार उस समय मौन ही रहना चाहिए और कुछ नहीं, बीरबल के पिता को मूर्ख बोल रहा है, मौन ही होना चाहिए तो, जो किसी प्रकार से उत्तेजीत न हो वही विक्रम है, वही बजरंगी है, भाई-बहनों, आज मंगलवार के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी के लिये मंगलमय् हो।
जय श्री रामजी
जय श्री हनुमानजी
जय श्री हनुमानजी
लेखक पण्डित श्री कृष्ण दत्त शर्मा
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